The appearance of Pitradosh in one’s Kundali (Horoscope) at the time of one’s birth, it can also be found if there had been immense attachment between the dead and the person still alive. In either case a NagbaliPitdoshNivaranPooja is performed so that the two souls detach themselves from each other, as it could be harmful for both of them, and to attain moksha for the dead.
The appearance of Pitradosh in one’s horoscope can lead to problems such as discord among the family members, repeated quarrels for petty things, frustration in the house as well as your business. There would be lack of peace and accord in the house or business locations. One may even encounter negative vibes after entering these premises. It might bar the growth and overall development of individuals, despite of taking great efforts.
A person is affected by Pitra Dosh if he is born under the ninth house where Sun and Rahu combine. People also believe that if someone’s ancestors have not attained peace due to religious rituals at the time of death then this Dosha develops in the horoscope of the person.
Pitra Dosh is a very important aspect in the
Indian astrology and one should amend it as soon as possible without
any delay. It generally occurs when the ancestors find it very hard to
free themselves from the ties on earth and results in hardships. If the
pitras are happy with the devotion, then they surely clear all the path
to happiness as well as success.
a family member departs a Shradha is performed by the immediate family
to ensure that their soul is satiated and to get their blessings.
However, if this ritual is not performed, the departed ancestors do not
attain peace. Owing to this a flaw (dosh) develops in one’s Horoscope,
known as “Pitra Dosh”.
If any of the above problems are haunting you, a Pitra Dosh Nivaran Puja should be performed at the earliest at your place or alternately by learned purohits, the pooja can be performed at any river bank or any Shiv Temple. There are no suitable days to perform the pooja as it can be performed at any time of the year.
A Hawan is lit and Pindadan is done on the banks of a river. The pinda (ladoo) is made of rice flour and black sesame seeds. After the hawan, brahmanbhojan, ie., food to the Brahmins is served. It takes 3 days to perform the pooja with 5 pundits performing the ritual.
शिवपुराण में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि विद्याता ब्रह्माजी से अजेय रहने का वरदान प्राप्त कर महाबली असुरराज त्रिपुरासुर देवों के साथ-साथ समस्त ऋषियों को भी प्रताड़ित करता रहता था। सभी देवताओं ने त्रिपुरासुर भय से परेशान होकर भगवान शिव का आह्वान किया तो भगवान शिव त्रिपुरासुर से युद्ध के लिए तैयार हो गए। त्रिपुरासुर से भगवान शिव का युद्ध सहस्त्रों वर्षों तक चला, किन्तु कोई परिणाम नहीं निकाल पा रहा था। युद्ध में अधिक व्यस्त रहने के कारण भगवान शिव के नेत्रों में शूल होने के कारण नेत्रों से आंसू गिरने लगे। जो आंसू पृथ्वी पर गिरे, उन्होंने वृक्ष का रूप ले लिया। कालांतर में उस वृक्ष से जो फल निकले वहीं रूद्राक्ष कहलाए। यदि हम रूद्राक्ष का संधि विच्छेद करे तो यही अर्थ निकलेगा अर्थात् रूद्र + अक्ष यानि की रूद्र के अक्ष अर्थात् शिव के आंसू। रूद्र भी शिवजी का ही एक नाम है।
रूद्राक्ष के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक धारियां खिंची होती हैं। इन्हें मुख कहा जाता है। इन्हीं धारियों के आधार पर एकमुखी से सत्ताईस मुखी तक रूद्राक्ष फलते हैं, जिनके अलग-अलग महत्व व उपयोगिता है। जिस रूद्राक्ष में स्वयं छिद्र होता है, चाहे वह किसी भी मुख का हो, अपने गुण-धर्म के आधार पर श्रेष्ठ होता है। रुद्राक्ष धारण करने से कभी किसी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है अत: हमारे धर्म एवं हमारी आस्था में रूद्राक्ष का स्थान रत्नों से भी उच्च है। रूद्राक्ष को सदैव सोमवार के दिन प्रात:काल शिव मन्दिर में बैठकर गंगाजल या कच्चे दूध में धो कर; लाल धागे में अथवा सोने या चांदी के तार में पिरो कर धारण किया जा सकता है।
रूद्राक्ष के मुख व लाभ:
एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात शिव का रूप माना जाता है। इस एकमुखी रुद्राक्ष द्वारा सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. तथा भगवान आदित्य का आशिर्वाद भी प्राप्त होता है।
दो मुखी रुद्राक्ष या द्विमुखी रुद्राक्ष शिव और शक्ति का स्वरुप माना जाता है। इसमें अर्धनारीश्व का स्वरूप समाहित है तथा चंद्रमा सी शीतलता प्रदान होती है।
तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि देव तथा त्रिदेवों का स्वरुप माना गया है। तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा पापों का शमन होता है।
चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म स्वरुप होता है। इसे धारण करने से नर हत्या जैसा जघन्य पाप समाप्त होता है। चतुर्मुखी रुद्राक्ष धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष को प्रदान करता है।
पांच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का स्वरूप माना जाता है। यह पंच ब्रह्म एवं पंच तत्वों का प्रतीक भी है। पंचमुखी को धारण करने से अभक्ष्याभक्ष्य एवं स्त्रीगमन जैसे पापों से मुक्ति मिलती है. तथा सुखों को प्राप्ति होती है।
छह मुखी रुद्राक्ष को साक्षात कार्तिकेय का स्वरूप माना गया है। इसे शत्रुंजय रुद्राक्ष भी कहा जाता है यह ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति तथा एवं संतान देने वाला होता है।
सात मुखी रुद्राक्ष या सप्तमुखी रुद्राक्ष दरिद्रता को दूर करने वाला होता है। इस सप्तमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
आठ मुखी रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरूप माना जाता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष राहु के अशुभ प्रभावों से मुक्ति दिलाता है तथा पापों का क्षय करके मोक्ष देता है।
नौ मुखी रुद्राक्ष को भैरव का स्वरूप माना जाता है। इसे बाईं भुजा में धारण करने से गर्भहत्या जेसे पाप से मुक्ति मिलती है। नौमुखी रुद्राक्ष को यम का रूप भी कहते हैं। यह केतु के अशुभ प्रभावों को दूर करता है।
दस मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप कहा जाता है। दस मुखी रुद्राक्ष शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है। इसे धारण करने से समस्त भय समाप्त हो जाते हैं।
एकादश मुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का रूप माना जाता है। एकादश मुखी रुद्राक्ष को भगवान हनुमान जी का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने से ज्ञान एवं भक्ति की प्राप्ति होती है।
द्वादश मुख वाला रुद्राक्ष बारह आदित्यों का आशीर्वाद प्रदान करता है। इस बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान यह फल प्रदान करता है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष को इंद्र देव का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने पर व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
चौदह मुखी रुद्राक्ष भगवान हनुमान का स्वरूप है। इसे सिर पर धारण करने से व्यक्ति परमपद को पाता है।
पंद्रह मुखी रुद्राक्ष पशुपतिनाथ का स्वरूप माना गया है। यह संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।
सोलह मुखी रुद्राक्ष विष्णु तथा शिव का स्वरूप माना गया है। यह रोगों से मुक्ति एवं भय को समाप्त करता है।
सत्रह मुखी रुद्राक्ष राम-सीता का स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष विश्वकर्माजी का प्रतीक भी है। इसे धारण करने से व्यक्ति को भूमि का सुख एवं कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का मार्ग प्राप्त होता है.
अठारह मुखी रुद्राक्ष को भैरव एवं माता पृथ्वी का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है.
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष नारायण भगवान का स्वरूप माना गया है यह सुख एवं समृद्धि दायक होता है।
बीस मुखी रुद्राक्ष को जनार्दन स्वरूप माना गया है। इस बीस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि का भय नहीं सताता।
इक्कीस मुखी रुद्राक्ष रुद्र स्वरूप है तथा इसमें सभी देवताओं का वास है। इसे धारण करने से व्यक्ति ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है।
गौरी शंकर रुद्राक्ष – यह रुद्राक्ष प्राकृतिक रुप से जुडा़ होता है शिव व शक्ति का स्वरूप माना गया है। इस रुद्राक्ष को सर्वसिद्धिदायक एवं मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है। गौरी शंकर रुद्राक्ष दांपत्य जीवन में सुख एवं शांति लाता है।
गणेश रुद्राक्ष – इस रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरुप माना जाता है. इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। यह रुद्राक्ष विद्या प्रदान करने में लाभकारी है विद्यार्थियों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत लाभदायक है।
गौरीपाठ रुद्राक्ष – यह रुद्राक्ष त्रिदेवों का स्वरूप है। इस रुद्राक्ष द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है।
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