माँ दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है। दुर्गा जी को प्रसन्न करने के लिए जिस यज्ञ विधि को पूर्ण किया जाता है उसे शतचण्डी यज्ञ बोला जाता है। शतचण्डी यज्ञ नवचंडी यज्ञ को सनातन धर्म में बेहद शक्तिशाली वर्णित किया गया है। इस यज्ञ से बिगड़े हुए ग्रहों की स्थिति को सही किया जा सकता है और सौभाग्य इस विधि के बाद आपका साथ देने लगता है। इस यज्ञ के बाद मनुष्य खुद को एक आनंदित वातावरण में महसूस कर सकता है। वेदों में इसकी महिमा के बारे में यहाँ तक बोला है कि शतचण्डी यज्ञ सतत चंडी यज्ञ के बाद आपके दुश्मन आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। इस यज्ञ को गणेशजी, भगवान शिव, नव ग्रह, और नव दुर्गा (देवी) को समर्पित करने से मनुष्य जीवन धन्य होता है।
शतचण्डी यज्ञ की महिमा
शतचण्डी यज्ञ यज्ञ विद्वान ब्राह्मण द्वारा किया जाता है क्योंकि इसमें 700 श्लोकों का पाठ किया जाता है जो एक निपुण ब्राह्मण ही कर सकता है। शतचण्डी यज्ञ नव चंडी यज्ञ एक असाधारण, बेहद शक्तिशाली और बड़ा यज्ञ है जिससे देवी माँ की अपार कृपा होती है। सनातन इतिहास में कई जगह ऐसा आता है कि पुराने समय में देवता और राक्षस लोग इस यज्ञ का प्रयोग ताकत और ऊर्जावान होने के लिए निरंतर प्रयोग करते थे। शतचण्डी पाठ महायज्ञ को करने वाला ब्राह्मण विद्वान होना चाहिए जो पाठ का शुद्ध उच्चारण कर सके जिससे लाभ की प्राप्ति हो। अगर पाठ का अशुद्ध उच्चारण हुआ तो तत्काल हानि की प्राप्ति होती है।
शतचंडी यज्ञ की कथा
अत्याचार से सकल चराचर जगत में त्राहि त्राहि मच रही थी, तभी ब्रम्हा विष्णु महेश की उपासना से महा शक्ति के रूप में जगत जननी माँ दुर्गा जी प्रकट हुर्इ, और माँ दुर्गा जी इस उपासना से प्रसन्न हुर्इ और देवताओं से वरदान मांगने को कहा। तभी देवताओं ने राक्षसों से पृथ्वी को भय मुक्त कराने के लिए माँ दुर्गा जी से आग्रह किया। माँ ने महाकाली के रूप में राक्षसों का संहार किया जिसका वर्णन मार्कण्डेय पुराण में श्री दुर्गा सप्तसती नामक ग्रन्थ में वर्णित है।
श्री दुर्गासप्त सती के पाठ को 108 बार करने को शतचण्डीपाठ महायज्ञ कहा जाता है, पाठ को 1000 बार करने को सहस्स्रचण्डी महायज्ञ कहा जाता है और पाठ को एक लाख बार करने पर लक्ष्यचण्डी महायज्ञ कहा जाता है।
शतचण्डी पाठ महायज्ञ करने की विधि
शतचण्डी पाठ महायज्ञ के सर्वतोभद्रमण्डल, षोडसमात्रिकामण्डल, नवग्रहमण्डल, वास्तुमण्डल, क्षेत्रपालमण्डल, पंचांगमण्डल आदि इन मण्डलों पर देवी देवताओं का ध्यान, आवाहन, पूजन करके पाठ सम्पन्न कराया जाता है।
यज्ञ करने के लिये सबसे पहले हवन कुंड का पंचभूत संक्कार किया जाता है इसके लिये कुश के अग्रभाग से वेदी को साफ किया जाता है |
उसके बाद गाय के गोबर व स्वच्छ जल से कुंड का लेपन किया जाता है।
तत्पश्चात वेदी के मध्य बायें से तीन खड़ी रेखायें दक्षिण से उत्तर की ओर अलग-अलग खिंचें।
फिर रेखाओं के क्रमानुसार अनामिका व अंगूठे से कुछ मिट्टी हवन कुंड से बाहर फेंकें उसके बाद दाहिने हाथ से शुद्ध जल वेदी में छिड़कें।
इस प्रकार पंचभूत संस्कार करने के बाद आगे की क्रिया शुरु करते हुए अग्नि प्रज्जवलित कर अग्निदेव का पूजन करें।
इसके बाद भगवान गणेश सहित अन्य ईष्ट देवों की पूजा करते हुए मां दूर्गा की पूजा शुरु करें
शतचण्डी पाठ से पहले यह करे
संकल्प शापविमोचन कवच अर्गला कीलक एवं न्यास नर्वाण मंत्र जप एवं पाठ के अंत में न्यास नवार्ण मंत्र जप देवी सूक्तम त्रयरहस्य सिद्धकुंजिका स्त्रोत क्षमा प्रर्थना का पाठ करने से पाठ की पूर्ति होती है। यह आदि शक्ति जगत जननी मा जगदम्बा की उपासना में विशेष प्रभावशाली होता है।
शतचण्डी पाठ महायज्ञ से लाभ
यह पाठ मनुष्य के जीवन में विशेष परिस्थिति में जैसे शत्रु पर विजय, मनोवांछित नौकरी की प्राप्ति, नौकरी में प्रमोशन, व्यापार में वृद्धि, परिवार में कलह क्लेश से मुक्ति एवं विभिन्न प्रकार की परेशानियों से मुक्ति आदि पाने के लिए कराया जाता है।
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